MA Semester-1 Education Paper-II Methodology of Educational Research - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - शैक्षिक अनुसंधान की पद्धति - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - शैक्षिक अनुसंधान की पद्धति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2686
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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - शैक्षिक अनुसंधान की पद्धति

अध्याय - 6

समस्या की पहचान

(Indentification of Problem)

 

प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर -

डब्लू. एस. मुनरो के अनुसार - समस्या को परिभाषित करने का अर्थ है कि उसे विस्तृत रूप से और ठीक प्रकार से सुनिश्चित बनाया जाए।"

अनुसन्धान के लिए समस्या के चुनाव और कथन के पश्चात् सबसे महत्वपूर्ण कार्य समस्या का परिभाषीकरण है। वास्तव में परिभाषीकरण से तात्पर्य अध्ययन की समस्या को चिन्तन द्वारा सम्पूर्ण समस्या क्षेत्र से अलग निकाल कर स्पष्ट करना है।

किसी समस्या के परिभाषीकरण के समय उसकी विस्तृत व्याख्या हेतु हमें निम्नांकित रेखाकृति में दी गई बातों का स्पष्टीकरण करना होगा -

समस्यात्मक स्थिति

2686_001_034

समस्या के तत्वों का विश्लेषण - समस्या में निम्न तत्वों का विश्लेषण किया जाता है -

(1) समस्या का उसके तत्वों में विश्लेषण।
(2) अध्ययन सीमा का विश्लेषण।
(3) सम्बन्धित साहित्य का विश्लेषण।
(4) आँकड़ों के समाधान तथा प्राप्त करने के विधि।
(5) प्रत्यय निर्मित तथा अन्य शब्दों की व्याख्या।
(6) समस्या का महत्व तथा औचित्य।
(8) समय शक्ति का निर्धारण।
(7) क्षेत्र का स्पष्टीकरण।

समस्या का विश्लेषण एवं उसका परिभाषीकरण

समस्या का अन्तिम रूप से चयन हो जाने के बाद उसका कथन (Statement) किया जाता है अर्थात् अन्तिम रूप से उसको लिखा जाता है तथा इस कथन के बाद समस्या का गहराई से विश्लेषण ( analysis) अर्थात् परिभाषीकरण (define ) एवं वर्णन (describe) किया जाता है। कई कारणों से ऐसा किया जाना जरूरी है। समस्या का विश्लेषण एवं परिभाषीकरण शोध की दिशाओं को सिद्ध करता है तथा इस बात की ओर संकेत करता है कि उस अनुसंधान में किस प्रकार के चर सन्निहित हैं, उनका मापन किस प्रकार किया जाएगा तथा अनुसंधान की प्रक्रिया क्या होगी। इस प्रकार अनुसंधान कार्य का पूरा मानचित्र सिद्ध एवं निश्चित हो जाता है। भिटनी (1964, पृ. 80-81) के अनुसार समस्या के परिभाषीकरण से अर्थ होता है, “समस्या को एक परिधि के भीतर सीमित करना, उसे उन मिलते-जुलते प्रश्नों से भिन्न एवं अलग करना जो सम्बन्धित परिस्थितियों में पाए जाते हैं।" ऐसा करने से शोधकर्त्ता को स्पष्ट रूप से प्रारम्भ हो जाता है कि समस्या वास्तव में क्या है। प्रारम्भ में ही समस्या का इस प्रकार का विशिष्टीकरण एवं व्यावहारिक सीमांकन बहुत अधिक जरूरी होता है। इस संबंध में मुनरो एवं ऐंगिलहार्ट (1928 पृ. 14 ) का कथन विशेष महत्व का है। उनका कहना है कि समस्या के परिभाषीकरण का आशय है "उसका विस्तृत एवं सही-सही विशिष्टीकरण करना, प्रत्येक मुख्य एवं गौण प्रश्न जिसका उत्तर वांछनीय है, का स्पष्टीकरण करना तथा अनुसंधान की सीमाओं का निर्धारण करना।" इसके लिए उनके अनुसार, यह जरूरी है कि जो अनुसंधान पहले हो चुके हैं, उनकी समीक्षा की जाए ताकि यह निश्चित किया जा सके कि क्या करना है। कभी-कभी एक ऐसे शैक्षिक दृष्टिकोण अथवा शिक्षा सिद्धान्त का विकास एवं निर्माण करना भी जरूरी हो सकता है जो प्रस्तावित अनुसंधान को एक आधार प्रदान कर सके। इसके अन्तर्गत आधारभूत अवधारणाओं को भी स्पष्ट करना आवश्यक होता है।

साधारण भाषा में समस्या के परिभाषीकरण से अर्थ उसके विशिष्टीकरण एवं स्पष्टीकरण से ही होता है। उसका आधार समस्या का विश्लेषण एवं स्पष्ट वर्णन होता है। उसके अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य आते हैं -

1. समस्यागत- अनुसंधान कार्य के विस्तार (Scope) को सीमित करना - इसका आशय है कि समस्या का वर्णन इस प्रकार करना कि उससे जितने कार्य का ज्ञान होता है उतना कार्य शोधकर्त्ता की सामर्थ्य के भीतर हो। दूसरे शब्दों में, एक विस्तृत एवं व्यापक समस्या को काट-छाँटकर सीमित बनाना इसके अन्तर्गत आता है। उदाहरणार्थ, यदि समस्या है 'समस्यात्मक बालकों के व्यवहारों का अध्ययन करना, तो यह समस्या अत्याधिक अस्पष्ट विस्तृत एवं व्यापक है। इसके अन्तर्गत अनेक प्रकार के समस्यात्मक बालकों, व्यवहारों के अनेक प्रकार के कारणों, अध्ययन की कई विधियों, विविध स्थानों एवं विविध आयु के बालकों का अध्ययन आता है। इन सब अध्ययनों को पूरा करने में बरसों लग जायेंगे जो किसी भी शोधकर्त्ता के लिए संभव नहीं है। अतः समस्या को सीमित, संक्षिप्त एवं संकुचित करना जरूरी है। किस प्रकार के समस्यात्मक बालकों, किस आयु के, कौन से विशिष्ट कारणों आदि का अध्ययन किया जाएगा, इनका विनिश्चयन एवं स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना जरूरी है। यही समस्या के परिभाषीकरण का अर्थ है। मौलिक अधिकार (पृ. 85) के अनुसार, यदि समस्या स्पष्ट नहीं है तो आगे चलकर बहुत-सी समस्याएँ पैदा हो जाती हैं तथा परिणामों के सार्थक एवं आवश्यक होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। अतः शोध- समस्या बहुत विस्तृत एवं व्यापक (जैसे, अध्यापक शिक्षण की प्रभावित का अध्ययन) न होकर उस विषय के कुछ आवश्यक एवं विशिष्ट पक्षों तक ही सीमित होनी चाहिए। साथ ही उसे इतना संक्षिप्त एवं संकुचित भी नहीं बनाना चाहिए कि वह उपहास मात्र बनकर रह जाए। -

2. समस्या - संबंधी विभिन्न अंगों (elements) का स्पष्टीकरण एवं वर्णन करना - इसके अन्तर्गत शोधकर्त्ता समस्या की पृष्ठभूमि (background) का उल्लेख करता है, उसके सैद्धांतिक आधार (theoretical base) का वर्णन करता है तथा उन अवधारणाओं (assumptions) का भी स्पष्टीकरण करता है जो समस्या में सन्निहित होती हैं। साथ ही वह उन चारों तथ्यों, परिस्थितियों, व्यक्तियों आदि का भी उल्लेख करता है, जिनको समस्या से अग रखा जाना है। सामूहिक रूप से इन सभी पक्षों का स्पष्टीकरण एवं उल्लेख समस्या के परिभाषीकरण, विश्लेषण एवं वर्णन के अन्तर्गत आता है।

3. समस्या में प्रयुक्त शब्दों (Terms) एवं संकल्पनाओं (Concepts) के अर्थों को स्पष्ट करना तथा उन्हें परिभाषित करना - यह भी समस्या के परिभाषीकरण के अन्तर्गत ही आता है। यदि इनके अर्थ स्पष्ट नहीं किए जाते हैं तो समझना भी मुश्किल होगा कि समस्या है क्या। कुछ शब्द एवं संकल्पनाएँ ऐसी हो सकती हैं, जिनके अलग-अलग संदर्भों में अलग-अलग अर्थ होते हैं अथवा जिन्हें अलग-अलग लेखकों अथवा विशेषज्ञों ने अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया है। बुद्धि, प्रेरणा, मनोवैज्ञानिक आवश्यकता ( needs), व्यक्तित्व सन्तुलन (personality adjsutment), पर्यावरण (Climate) आदि अनेक ऐसी संकल्पनाएँ हैं, जिनके भिन्न-भिन्न अर्थ एवं परिभाषाएँ मिलती हैं। अतः शोधकर्त्ता को समस्या का परिभाषीकरण करते समय यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि उसकी समस्या में प्रयुक्त इन शब्दों एवं संकल्पनाओं को किस अर्थ में लिया गया है। ऐसा करने से उनका सही ढंग से मापन करना भी सरल हो जाता है। सामान्यतया इनको मूर्त एवं निश्चित व्यवहारों के रूप में परिभाषित किया जाता है। साहित्य में उन्हें किस-किस प्रकार से परिभाषित किया गया है, उन सबका उल्लेख करते हुए विशिष्ट रूप से यह बताना चाहिए कि प्रस्तावित अनुसंधान - समस्या में उन्हें किस अर्थ में लिया गया है तथा उनका मापन किस प्रकार किया जाना है, कौन-कौन से तत्व, व्यवहार, परिस्थितियाँ, घटनाएँ उनके परिचायक (पदकपबंजवते) होंगे आदि। उदाहरण के लिए यदि छात्रों की "शैक्षिक उपलब्धि" एक चर है, तो यह स्पष्ट करना होगा कि उसका अर्थ छात्रों के परीक्षांक, अध्यापक द्वारा किए गए रेटिंग अथवा प्रमापीकृत निष्पत्ति- परीक्षाओं पर प्राप्त अंक आदि में से किस एक से हैं।

हिलवे (1964 पृ. 177) ने समस्या के परिभाषीकरण हेतु निम्न चार नियमों की ओर संकेत किया है -

(1) यह निश्चित करना कि समस्या का विषय-क्षेत्र न तो बहुत ज्यादा विस्तृत हो और न बहुत अधिक संकुचित।
(2) समस्या को विशिष्ट प्रश्नों के रूप में व्यक्त करना, जिसके निश्चित उत्तर सम्भव हों।
(3) समस्या का इस प्रकार सीमांकन करना कि जिन पक्षों एवं तत्वों का समस्या से संबंध नहीं है, वे स्पष्ट रूप से उससे अलग हो जाएँ।
(4) उन सब शब्दों को जो विशिष्ट हैं तथा जिनका प्रयोग समस्या में हुआ है; परिभाषित करना।

उपरोक्त प्रकार से समस्या का विश्लेषण एवं परिभाषीकरण करने पर उसके प्रत्येक पक्ष का निश्चियन एवं स्पष्टीकरण हो जाता है। तब समस्या का कथन अथवा यों कहें कि उसे जो शीर्षक दिया गया है, उसका वास्तव में क्या अर्थ है, पूर्णतया सुनिश्चित एवं सिद्ध हो जाता है। साधारणतया समस्या कथन के बाद उसकी विस्तार से व्याख्या की जाती है। इसी को समस्या का परिभाषीकरण करना कहते हैं। इसी को प्रस्तावित अनुसंधान परियोजना, सारांश रूप ( synopsis) अथवा एजेण्डम (agendum) भी कहा जाता है, जिसे अनुसंधान कार्य शुरू करने से पहले ही तैयार कर लिया जाता है। इसके आवश्यक अंग निम्नलिखित हैं-

(1) समस्या - कथन।
(2) समस्या का सैद्धांतिक आधार (theoretical framework)।
(3) समस्या का महत्व अथवा औचित्य।
(5) आधारभूत अवधारणाएँ।
(4) तकनीकी शब्दों की परिभाषाएँ।
(6) क्षेत्र का सीमांकन (delimitations)।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- शैक्षिक शोध को परिभाषित करते हुए इसका अर्थ बताइये तथा इसकी विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं?
  2. प्रश्न- शिक्षा अनुसंधान की विशेषताएँ बताइये।
  3. प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधान की परिभाषा तथा उसका स्वरूप बताइये?
  4. प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधान की प्रकृति तथा उसके क्षेत्र के विषय में समझाइये।
  5. प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधान के क्षेत्र की विस्तृत चर्चा कीजिए।
  6. प्रश्न- शिक्षाशास्त्र में अनुसन्धान की क्या आवश्यकता है? उदाहरणों द्वारा यह बताइये कि शैक्षिक अनुसन्धान और प्रायोगिक अनुसन्धान ने शिक्षाशास्त्र विषय को कैसे प्रभावित किया है?
  7. प्रश्न- अनुसन्धान कार्य की प्रस्तावित रूपरेखा से आप क्या समझती है? इसके विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- शैक्षिक शोध की परिभाषा दीजिए। शोध प्रक्रिया में निहित चरणों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- शिक्षा अनुसंधान के कार्य बताते हुए इसके महत्व पर टिप्पणी कीजिए।
  10. प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधान के महत्व पर टिप्पणी कीजिए।
  11. प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधानों के निष्कर्षों की उपयोगिता क्या है? तथा अनुसंधान के कितने सोपान हैं?
  12. प्रश्न- अनुसंधान के कितने सोपान होते हैं?
  13. प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधान के क्या लाभ होते हैं? बताइये। .
  14. प्रश्न- शोध सामान्यीकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  15. प्रश्न- शैक्षिक शोध में परिणामों व निष्कर्षों की उपयोगिता संक्षेप में लिखिए।
  16. प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधान के उद्देश्य बताइये।
  17. प्रश्न- मौलिक अनुसंधान का क्या अर्थ है? तथा इसकी विशेषताएँ बताइये।
  18. प्रश्न- व्यवहृत अनुसंधान का अर्थ एवं इसकी विशेषताएँ बताइये।
  19. प्रश्न- व्यवहारिक अनुसंधान की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ क्या है? तथा इसकी विशेषताएँ एवं महत्व का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान की उत्पत्ति पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान की विशेषताएँ क्या है? बिन्दुवार वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान का क्या महत्व है?
  24. प्रश्न- मौलिक शोध एवं क्रियात्मक शोध में क्या अन्तर है? क्रियात्मक शोध के विभिन्न चरणों की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- मौलिक तथा क्रियात्मक शोध में क्या अन्तर है?
  26. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान की क्या आवश्यकता है तथा क्या उद्देश्य है? के बारे में समझाइये।
  27. प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान की शिक्षा के क्षेत्र में क्या आवश्यकता है?
  28. प्रश्न- समस्या के कारणों का उल्लेख कीजिए।
  29. प्रश्न- क्रियात्मक परिकल्पना का मूल्यांकन कीजिए!
  30. प्रश्न- मात्रात्मक अनुसंधान से आप क्या समझते हैं? तथा यह कितने प्रकार का होता है।
  31. प्रश्न- मात्रात्मक अनुसंधान कितने प्रकार का होता है।
  32. प्रश्न- मात्रात्मक अनुसंधान की विशेषताएँ बताइये।
  33. प्रश्न- मात्रात्मक अनुसंधान की सीमाएँ कौन-कौन सी हैं?
  34. प्रश्न- गुणात्मक अनुसंधान से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य बताइये।
  35. प्रश्न- गुणात्मक अनुसंधान के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
  36. प्रश्न- गुणात्मक अनुसंधान के लक्षण तथा सीमाएँ बताइये।
  37. प्रश्न- मात्रात्मक एवं गुणात्मक शोध में क्या-क्या अन्तर होते हैं? समझाइये।
  38. प्रश्न- सम्बन्धित साहित्य की समीक्षा की आवश्यकता एवं प्रक्रिया बताइये।
  39. प्रश्न- सम्बन्धित साहित्य की समीक्षा की प्रक्रिया बताइये।
  40. प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।
  41. प्रश्न- समस्या का सीमांकन तथा मूल्यांकन कीजिए तथा समस्या के प्रकार बताइए।
  42. प्रश्न- समस्या का मूल्यांकन कीजिए।
  43. प्रश्न- समस्याओं के प्रकार बताइए?
  44. प्रश्न- समस्या के चुनाव का सिद्धान्त लिखिए। एक समस्या कथन लिखिए।
  45. प्रश्न- शोध समस्या की जाँच आप कैसे करेंगे?
  46. प्रश्न- अच्छी समस्या की विशेषतायें बताइये।
  47. प्रश्न- शोध समस्या और शोध प्रकरण में अंतर बताइए।
  48. प्रश्न- शैक्षिक शोध में प्रदत्तों के वर्गीकरण की उपयोगिता क्या है?
  49. प्रश्न- समस्या का अर्थ तथा समस्या के स्रोत बताइए?
  50. प्रश्न- शोधार्थियों को शोध करते समय किन कठिनाइयों का सामना पड़ता है? उनका निवारण कैसे किया जा सकता है?
  51. प्रश्न- समस्या की विशेषताएँ बताइए तथा समस्या के चुनाव के अधिनियम बताइए।
  52. प्रश्न- चरों के प्रकार तथा चरों के रूपों का आपस में सम्बन्ध बताते हुए चरों के नियंत्रण पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- चरों के रूपों का आपसी सम्बन्ध बताइए।
  54. प्रश्न- बाह्य चरों पर किस प्रकार नियंत्रण किया जाता है?
  55. प्रश्न- चर किसे कहते हैं? चर को परिभाषित कीजिए।
  56. प्रश्न- स्वतन्त्र चर और आश्रित चर का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  57. प्रश्न- कारक अभिकल्प की प्रक्रिया का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।
  59. प्रश्न- परिकल्पना की परिभाषा को स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- परिकल्पना के प्रकारों को स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- दिशायुक्त एवं दिशाविहीन परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- सामान्य परिकल्पना किसे कहते हैं?
  63. प्रश्न- उपकल्पना के स्रोत, उपयोगिता तथा कठिनाइयाँ बताइए।
  64. प्रश्न- वैज्ञानिक अनुसन्धान में उपकल्पना की उपयोगिता बताइए।
  65. प्रश्न- उपकल्पना निर्माण में आने वाली कठिनाइयाँ बताइए?
  66. प्रश्न- उत्तम परिकल्पना की विशेषताएँ लिखिए। परिकल्पना के कार्य लिखिए।
  67. प्रश्न- परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? किसी शोध समस्या को चुनिये तथा उसके लिये पाँच परिकल्पनाएँ लिखिए।
  68. प्रश्न- उपकल्पनाएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
  69. प्रश्न- शैक्षिक शोध में न्यादर्श चयन का महत्त्व बताइये।
  70. प्रश्न- शोधकर्त्ता को परिकल्पना का निर्माण क्यों करना चाहिए।
  71. प्रश्न- शोध के उद्देश्य व परिकल्पना में क्या सम्बन्ध है?
  72. प्रश्न- अच्छे न्यादर्श की क्या विशेषताएँ हैं? न्यादर्श चयन की कौन-सी विधियाँ हैं? शैक्षिक अनुसंधान में कौन-सी विधि सर्वाधिक प्रयोग में लाई जाती है और क्यों?
  73. प्रश्न- दैव निर्देशन के बारे में बताइए तथा उसकी समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- निदर्शन की प्रमुख समस्याएँ बताइए।
  75. प्रश्न- स्तरित निदर्शन व उद्देश्यपूर्ण निदर्शन और विस्तृत पद्धति से आप क्या समझते हैं? न्यादर्श के अन्य प्रकार बताइये।।
  76. प्रश्न- उद्देश्यपूर्ण निदर्शन से आप क्या समझते हैं?
  77. प्रश्न- विस्तृत निदर्शन पद्धति से आप क्या समझते हैं?
  78. प्रश्न- न्यादर्श के अन्य प्रकार समझाइए।
  79. प्रश्न- न्यादर्श की विधियाँ लिखिए।
  80. प्रश्न- शोध में न्यादर्श की क्या आवश्यकता है? अच्छे न्यादर्श की प्रमुख दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- मापन की त्रुटि और न्यादर्श की त्रुटि को परिभाषित कीजिए।
  82. प्रश्न- जनसंख्या व न्यादर्श में अन्तर कीजिए।
  83. प्रश्न- निदर्शन विधि किसे कहते हैं? परिभाषित कीजिए।
  84. प्रश्न- निदर्शन पद्धति के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- आदर्श निदर्शन की विशेषताएँ तथा गुण बताइए।
  86. प्रश्न- न्यादर्श प्रणाली के दोष।
  87. प्रश्न- न्यादर्श 'अ' में N = 150, M = 120 और = 20 तथा न्यादर्श 'ब' में N = 75, M = 126 और 5 = 22 जब इन दोनों को 225 प्राप्ताकों के समूह में संयुक्त कर दिया जाए तो 'अ' और 'ब' के मध्यमान तथा प्रमाणिक विचलन क्या होगें?
  88. प्रश्न- सामान्य सम्भावना वक्र क्या है? तथा इसमें कौन-सी विशेषताएँ पायी जाती हैं?
  89. प्रश्न- सामान्य प्रायिकता वक्र में कौन-कौन सी विशेषताएँ पायी जाती है?
  90. प्रश्न- सामान्य प्रायिकता वक्र के क्या उपयोग है?
  91. प्रश्न- असम्भाव्यता न्यादर्शन कब और क्यों उपयोगी होते हैं?
  92. प्रश्न- अवलोकन किसे कहते हैं? अवलोकन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा अवलोकन पद्धति की विशेषताएँ बताइए।
  93. प्रश्न- अवलोकन के प्रकारों की व्याख्या कीजिये।
  94. प्रश्न- सहभागी अवलोकन किसे कहते हैं?
  95. प्रश्न- असहभागी अवलोकन की व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- अवलोकन का महत्व, दोष तथा अवलोकनकर्त्ता के गुण बताइए।
  97. प्रश्न- अवलोकन पद्धति के दोष तथा अनुसन्धानकर्त्ता के गुण बताइए।
  98. प्रश्न- निरीक्षण विधि क्या हैं?
  99. प्रश्न- साक्षात्कार के प्रमुख चरण, गुण तथा दोष बताइए।
  100. प्रश्न- साक्षात्कारकर्त्ता के आवश्यक गुणों का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- साक्षात्कार के गुण तथा दोष बताइए।
  102. प्रश्न- साक्षात्कार के प्रकार बताइए।
  103. प्रश्न- साक्षात्कार किसे कहते हैं? साक्षात्कार की परिभाषाएँ दीजिए।
  104. प्रश्न- साक्षात्कार के उद्देश्य तथा विशेषताएँ बताइए।
  105. प्रश्न- समाजमिति की विशेषताएँ तथा समाजमिति विश्लेषण की विधियाँ बताइए।
  106. प्रश्न- समाजमिति विश्लेषण की विधियाँ लिखिए।
  107. प्रश्न- समाजमिति विधि किसे कहते हैं? परिभाषित कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रश्नावली का अर्थ बताइये तथा उसे परिभाषित करते हुए उसके प्रकार तथा विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रश्नावली के प्रकार तथा विशेषताएँ बताइए।
  110. प्रश्न- प्रश्नावली निर्माण प्रविधि का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- प्रश्नावली के गुण या लाभ बताइये।
  112. प्रश्न- प्रश्नावली विधि की सीमाएँ या दोष बताइए।
  113. प्रश्न- प्रश्नावली तथा अनुसूची में अन्तर लिखिए।
  114. प्रश्न- पश्चोन्मुखी या कार्योत्तर अनुसंधान किसे कहते हैं? इनकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  115. प्रश्न- कार्योत्तर अनुसंधान की विशेषतायें बताइये।
  116. प्रश्न- पश्चोन्मुखी अनुसंधान का महत्व बताइये तथा इसकी मुख्य कठिनाइयाँ क्या हैं? उदाहरण सहित विवेचना कीजिये।
  117. प्रश्न- पश्चोन्मुखी अनुसन्धान में कौन-सी मुख्य कठिनाइयाँ हैं? उदाहरण सहित विवेचना कीजिये।
  118. प्रश्न- अनुसंधान परिषद की संगठनात्मक संरचना क्या है? इसके लक्ष्य एवं उद्देश्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये।
  119. प्रश्न- दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के लक्ष्य एवं उद्देश्यों का वर्णन करिए।
  120. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि क्या है? इसके प्रमुख पदों को लिखिए। तथा इसके गुण-दोष का वर्णन कीजिए और शिक्षा में इसकी उपयोगिता बताइए।
  121. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- प्रयोगात्मक विधि की शिक्षा में उपयोगिता बताइए।
  123. प्रश्न- दार्शनिक अनुसंधान कितने प्रकार के होते हैं?
  124. प्रश्न- व्यक्ति इतिहास पद्धति की संक्षित व्याख्या कीजिए।
  125. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की विभिन्न विधियों के नाम बताइये।
  126. प्रश्न- सम्बन्धित साहित्य की आवश्यकता और कार्य स्पष्ट कीजिए। शोध प्रतिवेदन में सम्बन्धित साहित्य की क्या उपयोगिता है?
  127. प्रश्न- शोध प्रबन्ध के प्रारूप को स्पष्ट कीजिए।
  128. प्रश्न- उद्धरण में प्रतिवेदन के क्या नियम हैं? समझाइए।
  129. प्रश्न- फुटनोट के नियम बताइए।
  130. प्रश्न- सन्दर्भग्रन्थ-सूची क्या है?
  131. प्रश्न- शोध-प्रबन्ध का मूल्यांकन कीजिए?
  132. प्रश्न- शोध रिपोर्ट तैयार करने के क्या उद्देश्य हैं? रिपोर्ट लेखन की प्रक्रिया बताइये।
  133. प्रश्न- शोध रिपोर्ट लेखन क्या है? रिपोर्ट लेखन की प्रक्रिया बताइये।
  134. प्रश्न- शैक्षिक शोध से सम्बन्धित साहित्य की विवेचना कीजिए।

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